Wednesday, November 19, 2008

आगाज़


मैंने आगाज़ में अंजाम की बातें की हैं
गर समझ लो तो बड़े काम की बातें की हैं

सुबहे रोशन की कभी शाम की बातें की हैं
इस तरह गर्दिश-ऐ-अय्याम की बातें की हैं

वही जज्बा जो मोहब्बत का अमीं होता है
हाँ उसी जज्बा-ऐ-नाकाम की बातें की हैं

हम सुना बैठे हैं अफसाना-ऐ-कौनैन उन्हें
और कहने को फ़क़त नाम की बातें की हैं

चाँद मोहूम उम्मीदों का सहारा लेकर
आज उनसे दिल-ऐ-नाकाम की बातें की हैं

काँप उठी है मेरी दुनिया-ऐ-मोहब्बत ऐ दोस्त !
दिल से जब इश्क के अंजाम की बातें की हैं

मै गुज़र आया हर एक केफियते मय से जकी
वह समझते हैं कि बस जाम कि बातें की हैं

---------महमूद जकी

Friday, November 7, 2008

बहार-ऐ-इश्क

सभी बहार-ऐ-इश्क लाज़वाल कहते आए हैं

बगैर इश्क ज़िन्दगी वबाल कहते आए हैं

मुझे गुरुर-ऐ-ज़ब्त-ऐ-ग़म नही मगर ये अहले दिल

इन आँसूओं का रोकना कमाल कहते आए हैं

बकैद-ऐ-रस्म-ऐ-आशिकी ब-पास-ऐ-अजमत-ऐ-वफ़ा

नज़र-नज़र से अपने ग़म का हाल कहते आए हैं

जुनू जिसे समझ गया , मगर न अक्ल पा सकी

वह इस तरह भी किस्सा-ऐ-जमाल कहते आए हैं

कशाकश-ऐ-हयात ही तो लज्ज़त-ऐ-फिराक है

इसी लिए तो मौत को विसाल कहते आए हैं

मुझे नही है आरजू विसाल-ऐ-यार की जकी

विसाल को तो इश्क का ज़वाल कहते आए हैं

-------महमूद जकी

Wednesday, October 22, 2008

दिवाली

आज दिवाली है फिर दीप जलेंगे साथी
जगमगाएगा नई शान से भारत अपना
रूप बदलेगी नए ढंग से मोहब्बत अपना
तेरे शायर को नए गीत मिलेंगे साथी

काश ये दीप हर एक दिल में उजाला कर दें
इन के जलने से जहालत के अंधेरे जल जाएँ
इनकी खुशियों से ज़माने को सवेरे मिल जाएँ
काश इज्ज़त को वतन की ये दो बाला कर दें

दिल के अरमान तुझे आज बताऊँ साथी
काश अल्फाज़ में पैदा ये असर हो जाए
काश दिवाली की ये रात अमर हो जाए
और में तुझको यूँ ही गीत सुनाऊँ साथी

गीत से मेरे ये महफिल ही निराली हो जाए
यूँ अगर हो तो हकीक़त ही दिवाली हो जाए
--------महमूद जकी



आप सभी को दिवाली मुबारक

Monday, October 13, 2008

हाथ बटाओ

जीने का अहसास सजाओ

दुख में सुख के दीप जलाओ

मेरे गीत पे झूमने वालों

आओ मेरा हाथ बटाओ

-------- महमूद जकी

Saturday, September 27, 2008

ज़िन्दगी

जीने वालों का अहतराम तो हो

ज़िन्दगी तेरा कुछ निजाम तो हो

कह रहे है जिस ग़म- ऐ- हस्ती

ये फ़साना कहीं तमाम तो हो

ज़िन्दगी की हसीन राहों में

चंद लम्हात का कयाम तो हो

मंजिलें अब भी मुन्तजिर हैं जकी

जज्बा- ऐ- शोक तेज़गाम तो हो

------------महमूद जकी

Saturday, September 20, 2008

उनकी नज़रों


उनकी नज़रों से जाम लेता हूँ

होशमंदी से काम लेता हूँ

जाने क्यों दिल लरज़ने लगता है

जब बहारों का नाम लेता हूँ

मुस्कुराता हूँ जब्र ऐ पैहम पर

वक्त से इन्तेकाम लेता हूँ

उनके लुत्फो करम से हूँ वाकिफ

दूर ही से सलाम लेता हूँ

मेरा गिरना भी मसलेहत है जकी

उनका दामन जो थाम लेता हूं


---------महमूद जकी



Monday, September 15, 2008

मीडिया की ज़िम्मेदारी

जिनेवा में हुए महाप्रयोग की सफलता ने एक बार फिर मीडिया और विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कलाई खोल कर रख दी है। मीडिया अपनी टी आर पी की दौड़ में कितना अँधा हो गया है इसका अंदाज़ लगाया जा सकता है कि इसके द्वारा फेलाए जा रहे भ्रम की वजह से एक मासूम बच्ची ने अपना अनमोल जीवन गवां दिया।
मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले की इस बच्ची का कातिल कौन है ? किसने इसके दिल-ओ-दिमाग में इतनी दहशत पैदा कर दी कि उसने अपनी हसीन ज़िन्दगी को दहशत के साए के तले दबा कर खत्म लिया।
एक तो मीडिया के ज़रिये फेलाए जा रही दहशत से अवाम पहले ही खोफज़दा है वहीँ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हमारे मुल्क में अन्धविश्वास को भी बेहद बढावा दे रहा है। आज कल सूरते हाल यह हो गई है कि समाचार चैनल अपने प्राइम टाइम में अन्धविश्वास को बढ़ाने वाली खबरों को जगह दे रहे हैं।
चैनलों कि इस टी आर पी कि दौड़ में सिर्फ़ तीन सी (c) और एक एस (s) ही का जलवा सब तरफ़ दिखाई दे रहा है। पहला सी यानि क्रिकेट, इस सी (c) की हर ख़बर हमारे खबरिया चैनलों के लिए अहम् है। दूसरा सी (c) यानि क्राईम, इस से जुड़ी खबरों को देखने पर लगता है कि मुल्क में कुछ हो ही नही रहा है सिर्फ़ जुर्म और वारदात के। तीसरा सी (c) यानि सिनेमा, ये ऐसी दुनिया है जहाँ बिना चमक-धमक के कुछ नही होता। यहाँ के लोग लड़ते भी हैं तो समाचार कमरों के सामने ताकि ख़बर बन सकें और उसका फायदा उन्हें अपने करियर में मिले। अब बात बचे एक एस (s) यानि सेक्स की , कुछ समाचार चैनल तो आज कल बकायेदा देर रात को केवल इसी विषय पर ख़ास कार्यक्रम चला रहे है और मज़े कि बात यह है कि इन कार्यक्रमों को प्राइम टाइम से भी ज्यादा टी आर पी मिल रही है।
मीडिया के इस गैरजिम्मेदारी भरे रुख को कहीं और किसी तरह से रोकना ही होगा। इस पर लगाम लगाने की बातें काफी समय से की जाती रही हैं। अभी कुछ वक्त पहले ही मीडिया के अपने ही लोगों ने अपनी सीमायें तय करने के उद्देश्य से एक सेल्फ रेगुलातोरी कमेटी बनाई पर उसका भी अब तक तो कोई असर कहीं दिखाई नही दे रहा है।
लेकिन इस सब को कहीं तो रोकना होगा और इसके लिए कोई रास्ता तो ज़रूर तलाशना पड़ेगा। इस सब के लिये अब सोचने से आगे निकलकर कुछ करने का वक्त आ गया है।

Friday, September 12, 2008

ghazal


आरजुओं को सजाओ, मै ग़ज़ल कहता हूँ !
फूल चुनना है तो आओ, मै ग़ज़ल कहता हूँ!

-------महमूद जकी



Sunday, September 7, 2008

सच



अब तो सच्ची बात कहने से भी घबराते हैं लोग

क्या हुई जाती है दुनिया क्या हुए जाते है लोंग

-----------महमूद जकी


Saturday, September 6, 2008

इंतज़ार

उस इन्कलाब का जो इक करीब की पुकार है

तुम्हे भी इन्तेज़ार है, मुझे भी इंतज़ार है

ऐ सुस्त-सुस्त रहबरों ! तुम्हे यकीन हो न हो

मगर मुझे तो अपने होसलों पे एतेबार है

गमे-जहाँ की वादियों में होसले से काम ले

यहाँ न तेरा दोस्त है न कोई गमगुसार है

वो देखिये दिलों की रौशनी में कांपने लगा

नज़र के सामने जो मुश्किलात का गुबार है

जकी अभी सियासत-ऐ-गमे जहाँ के साये में

वफायें सोगवार हैं खुलूस अश्कबार है


-------महमूद जकी




Thursday, September 4, 2008

बढ़ते हुए क़दम




रुकने न पायें साथियों ! बढ़ते हुए क़दम

फिर इन्कलाब लायेंगे इस ज़िन्दगी में हम

ये क्या घुट रहा हो कहीं ज़िन्दगी का दम

कहने को फिर भी आम है सब पर तेरा करम

आओ कि पहले वक्त के गेसू सवांर ले

फिर उस के बाद देखेंग जुल्फों के पेच ओ ख़म

ये और बात है कि मयस्सर न हो सुकून

हासिल नहीं हयात का ऐ दोस्त ! सिर्फ़ ग़म

अहल ऐ नज़र के सामने तफरीक कुछ नहीं

तेरा ही अक्स पाते हैं देर ओ हरम में हम

छोड़ो के ख़ाक लुत्फ़ मिलेगा शराब में

अब महफिले निशात म साकी न जामे जम

दुनिया को दे रहें हैं नया सोचने का ढंग

और क्या काम लेते जकी शायरी से हम

---------महमूद जकी

Monday, September 1, 2008

मीडिया और बिहार बाढ़


ख़बरों की अहमियत को समझना भी अब ख़बर वाले भूल गए है । बात है २८ अगस्त २००८ की जब एक और देश के प्रधानमंत्री बिहार में आई बाढ़ और उससे हो रहे विनाश को राष्ट्रीय आपदा मान रहे थे। तो दूसरी तरफ़ लगभग सभी समाचार चैनल चला रहे थे ख़बर उस एक व्यक्ति की जो खेल से जुडा है। माना कि समाचार चैनलों को बाजारवाद के इस दौर में उद्योगजगत के साथ हाथ मिलकर चलना होता है लेकिन इतनी भी क्या बेहिसी कि राष्ट्रीय आपदा के वक्त में भी केवल उस ख़बर को विशेष रूप से चलाया जा रहा है जिससे जुडा है कई कंपनियों का ब्रांड अम्बस्डोर।

भूल जाते है वातानुकूलित समाचार कमरों में बैठे लोग की मौत का वह खोफनाक मंज़र कितना दिल दहलाने वाला होता होगा जब चारों तरफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ पानी ही नज़र आए। किसी एक व्यक्ति की कामयाबी की ख़बर चलाते वक्त कुछ उन लोगों के बारे में भी सोच ले जो पल पल जल के इस महाप्रलय का सामना करते हुए अपनी जान से हाथ धो रहे हैं और जिनको अपने आस पास सिर्फ़ मौत ही मौत दिखाई दे रही हो। मेहेरबानी करके एक बार उनकी तरफ़ भी देख लें जो अपना सब कुछ कोसी और गंगा की भेंट चढा चुके हैं या जो पिछले कई दिनों से अन का एक दाना भी अपने मुह में नही दाल सके हों। जो अपने सामने ही अपने सपनो की डोर को टूटते हुए देख रहे हों।

अपना फायदा हर कोई चाहता है। इसमे किसी को कोई आपत्ति भी नही होनी चाहिए, यह बिल्कुल स्वाभाविक है लेकिन अपने फायदे में दूसरो के दर्द को भूल जन इंसानियत के ख़िलाफ़ किया गया अपराध हे जिसे माफ़ किया जन इंसानियत पैर किए गए ज़ुल्म के बराबर है।

हेरानी की बात है कि १८ अगस्त को कोसी के बाँध में दरार पड़ने से बिहार में बाढ़ की स्तिथि भयानक रूप ले ली। हम सब ही जानते है कि हमारे देश और विशेष रूप से बिहार कि सरकार को अपनी ज़िम्मेदारी निभाना कितना आता है। बाढ़ ने महाप्रलय का रूप धारण कर लिया उसके बाद भी राज के मुखिया को केन्द्र से मदद मांगने में दस दिन लग गए। उससे पहले तक सिर्फ़ खोखली बयानबाजी से ही काम चलाते रहे। इस बार केन्द्र के रुख की सरहाना करनी होगी, क्यूंकि केंद्रीय मंत्री ने चाहे वह बिहार के ही क्यूँ न हों हवाई सर्वेक्षण करके स्तिथि कि गंभीरता को समझते हुए प्रधानमन्त्री के पास पहुँच कर दौरा करने और मदद का आग्रह करने पहल की और फिर प्रधानमन्त्री ने भी स्तिथि की नजाकत को समझते हुए मांग से ज़्यादा उदारता दिखाई।

इस सब घटना क्रममें देश का ससे तेज़ चलने वाला मीडिया क्यों पीछे रहा और खामोशी बनाये रखा समझ से परे है। बिहार और बिहार के सभी मंत्रियों और सरकारोंकि हर समय ख़बर रखने वाला मीडिया विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस बार किस तरह चूंक गया और इतनी भयानक हो चुकी स्तिथि को नज़रान्दाज़ कर गया हेरानी की बात है।

Friday, August 22, 2008

खेल




क्या हमारे खिलाड़ियों के ओलंम्पिक में हुए प्रदर्शन से हमें वाकई खुश होना चाहिए ? कभी लगता है क्या इतने विशाल और महान मुल्क के नागरिकों को इतनी सी कामयाबी पर इतना खुश होना चाहिए जितना हम लोग हुए हैं? मुझे लगता है हमे होना चाहिए क्यों कि खुशी तो सिर्फ़ खुशी होती है छोटी और बड़ी कर के उसकी अहमियत को कम करना उस खुशी देने वाले के साथ जियादती है।

अजीब नही लगता है हम अपनी कमजोरियों को किस तरह से शब्दों के जाल में घुमा कर छुपा लेने कि कोशिश करते हैं। अरे ज़रा सोचो तो इतना बड़ा देश, इतनी बड़ी आबादी और हम इतिहास रचने की बात कर रहे हैं कि हमने पहला व्यक्तिगत सुवर्ण पदक जीता या इस बार तो हम कुल मिलाकर तीन पदक जीत लिए हैं।

हम से कई मामलों में पीछे रहने वाले मुल्क हम से आगे हैं खेल कि दुनिया में। ज़्यादा परेशां करने वाली बात यह है कि हम अपने राष्ट्रीय खेल हॉकी में क्वालीफाई तक नही कर सके। कहाँ है हमारे देश कि संस्कृति को बचाने का दावा करने और स्वादशवाद का नारा देने वाली पार्टियाँ ? यहाँ खामोश क्यूँ हैं देश के इस और उसकी धरोहर के इस हाल पर ? मेरा मानना है के जिस तरह से हमे हमारे राष्ट्र का सम्मान प्यारा है वैसे ही हमे हमारी सभी राष्ट्रीय पहचानो से भी प्यार होना चाहिए। सम्मान जिस तरह राष्ट्रीय प्रतिक राष्ट्र ध्वज का है वैसा ही सम्मान राष्ट्रीय गीत, भाषा,खेल और पक्षी का होना चाहिए।

जहाँ एक और हम राष्ट्र गीत और राष्ट्र ध्वज के लिए लड़ मर रहे हैं वहीँ दूसरी और राष्तिर्ये खेल कि इतनी उपेक्षा क्यूँ?

सोचना चाहिए........... सोचना होगा ............... सोचिये


Wednesday, August 20, 2008

विश्वास अल्लाह पर


ज़िन्दगी में हादसे बड़ी तबदीली का सबब बन जाते हैं। मै छोटा सही लेकिन तजुर्बों और बड़ों के ऐतिमाद ने मुझे कभी छोटा रहने नही दिया। इस बार भी एक हादसा हुआ। सबको सामना करना था। किया एक बार फिर सब ने ऐतिमाद और चला मैं एक नए तजुर्बे के लिए। लगा कामयाबी मिल रही है। मिली भी देख कर विश्वास उनका जो हादसे का शिकार हैं। बहुत अपने। करीबी। मनो तो मेरा ही हिस्सा हैं । करी हिम्मत। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी सोच लिया के तजुर्बों मेंकामायाबी और नाकामयाबी दोनों का सामना करना पड़ सकता है। ज़िम्मेदारी जहाँ अच्छाई देती है वहीँ बुराई भी। खेर मुझे इस काम में अच्छाई और बुराई की परवाह भी नही है। मकसद एक बहन की खुशी और उसकी ज़िन्दगी। इस बार भी दिमागी तोर पर तो कामयाबी और नाकामयाबी दोनों के लिए तैयार हो कर शुरू किया पर इस बार नाकामयाबी के मानी बहुत ही खतरनाक दिख रहे थे। देखें इस बार क्या मिलता है। इंसान हूँ फ़रिश्ता नही। लेकिन दुआएं मेरे और मुझसे जुड़े लोगों के साथ। शुक्रिया उन सबका जो इस जदोजहद में साथ हैं। शुक्रिया उनका भी जो दुआ के ज़रिये इस मकसद से जुड़े। खुदा जल्द हिरासत को रिहाई में बदले। आमीन।

Wednesday, June 18, 2008

एक शेअर

मैंने आगाज़ में अंजाम की बातें की हैं
गर समझ लो तो बड़े काम की बातें की हैं

Monday, June 16, 2008

आज का शेअर

रुकने न पाएं साथियों ! बढ़ते हुए क़दम

फिर इंकलाब लायेंगे इस ज़िंदगी मैं हम

Saturday, June 7, 2008

एक ग़ज़ल

अब तो सच्ची बात कहने से भी घबराते हैं लोग
क्या हुई जाती है दुनिया क्या हुए जाते हैं लोग

Thursday, June 5, 2008

हालात

ज़िंदगी के सफर मे कभी बड़े -बड़े सदमे इंसान सह लेता है तो कभी एक छोटी- सी परेशानी बड़ी तकलीफदेह और जान लेवा सी लगने लगती है। ऐसा क्यों होता है ? सोच रहा हूँ। मुझे लगता है शायद तकलीफ के अहसास की शिद्दत हालात पर निर्भर करती है। अगर हालात साज़गार हों तो बड़ी परेशानी का भी सामना आसानी से किया जा सकता है। पर यह हालात को काबू मे कैसे किया जाए ? हालात होते क्या है कमबखत कहीं के। उस दिन और उस समय की आपकी सोचने की धारा , अगर वह सकारात्मक है, तो आपकी दिमागी हालत सकारात्मक होगी और इस सकारात्मक सोच के बल पर आप अपने आस- पास के वातावरण को भी सकारात्मक बना पाएंगे। आपके दिमाग, दिल और आस - पास के वातावरण से ही आपके हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है। तो अपने हालात को काबू मे रखने के लिए सोच से लेकर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष वातावरण को सकारात्मक रखना ज़रूरी है।

Wednesday, June 4, 2008

अब तो सच्ची बात कहने से भी घबराते है लोग

क्या हुई जाती है दुनिया क्या हुए जाते हैं लोग

चलने वाले तो पहुंच जाते है मंजिल पे जकी

सोचने वाले फ़क़त रास्ते मे रह जाते हैं लोग

आशिकी का है कहाँ , अब तो सियासी दौर है

कत्ल करके भी सज़ा से साफ बच जाते हैं लोग

फ़िक्र -ओ - फन, शेर- ओ -अदब है ज़िंदगी के वास्ते

इस हकीक़त को भी लेकिन अब तो झुट्लाते है लोग

ख़ुद बढ़ा देते हैं पहले मुजरिमो के होसले

बोख्लाते हैं बहुत जब मात खाते हैं लोग

अब कहाँ बाक़ी है दुनिया मे चलन ईसार कअ

अपने मतलब के लिए किस्सों को दोहराते हैं लोग

This ghazal is written by my father Mahmood Zaki

Saturday, May 31, 2008

पानी रे पानी

पानी रे पानी, तेरी कहानी, कितनी सुहानी। पानी कितनी तरह का होता है इसको शब्दों मे बंधना मुश्किल है। पानी आपार है , उसके रूप अनेक। पानी का मतलब इंसान की ज़िंदगी और उसकी ज़रूरत के लिहाज़ से तब्दील होता है। पानी के बिना ज़िंदगी का तसव्वुर नामुमकिन सा लगता है। अगर हम जल ही जीवन है कहते हैं तो इसका यह मतलब नही है कि हम जीवन के दुसरे तत्वों के महत्व को कम कर रहे हैं, बल्कि हमारा मकसद पानी की अहमियत बयान करना होता है। पानी के महत्व का अंदाजा इसी बात से होता है कि ज़मीन का ७० प्रतिशत हिस्सा पानी मे है। ८० प्रतिशत फल और सब्जी पानी से ही बनते हैं। हमारा शरीर ५०-७० प्रतिशत पानी का बना हुआ है। पानी कि अधिकता जहाँ इंसान के शरीर के लिए तकलीफ का कारण होती है वहीं पानी कि कमी भी शरीर मे विभिन्न प्रकार की कमजोरियों को जन्म देती है। कहने का मतलब यह है की शरीर के विभिन्न तत्वों के साथ पानी का सही संतुलन होना बेहद आवश्यक है।
हर व्यक्ति के लिए पानी शारीरिक रूप से जितना महत्वपूर्ण है उतना ही अन्य कारणों से भी बेहद अहमियत रखता है। किसी के लिए समंदर का पानी जीवन है तो किसी की आशाएं बारिश के पानी से जुड़ी होती हैं। कोई नदी के पानी पर निर्भर है तो कोई कुऐ के पानी से अपनी ज़िंदगी की गाड़ी चला रहा है। मतलब पानी अपने आप को हर एक व्यक्ति की ज़िंदगी से इस प्रकार जुड़े हुए है जिसको अलग करने से ज़िंदगी बेमतलब सी दिखई देने लगे। चाहे फिर वह तालाब का पानी हो या झील का, नाले का पानी हो या गरम या ठंडा पानी, मीठा पानी हो या खारा पानी, पवित्र पानी हो या अपवित्र पानी, ज़हरीला पानी हो या अमृत की तरह का पानी।
हमारे सामाजिक परिदर्श्य मे पानी ने कहावतों का रूप ले कर अपनी अहमियत को और बेहतर तरीके से साबित किया है। जेसे शर्म से पानी पानी होना, आँख का पानी मर जाना, चुल्लू भर पानी मे डूब मरना या आखरी समय मे पानी देने वाला होना।
कहने का तात्पर्य यह है के पानी के महत्त्व को सही रूप मे समझते हुए उसकी बर्बादी को रोका जाए, हर स्तर पर। हर व्यक्ति को पानी का गिलास हाथ मे लेते समय सोचना चाहिए कि पानी की कमी कितने दर्दनाक हालात पैदा कर सकती है। किसी ने सोचा था आज से ६०-७० साल पहले कि एक दिन पानी को बोतल मे बंद करके बेचा जाएगा, आज हो रहा है। अब तो हमे सोचना होगा आने वाले समय के लिए।
पानी आज ही कितने देशों के बीच विवाद के मुद्दा बन चुका है। क्या होगा जब पानी की कमी और बढेगी? यह तो पहले ही कहा जाता रहा है कि तीसरा महायुद्ध पानी पर वर्चस्व को लेकर ही होगा। हम अपने इस महत्वपूर्ण खजाने को बचने के लिए क्या कर रहे हैं? यह सोचना आज बहुत ज़रूरी है।

Thursday, May 29, 2008

नज़रिये का मक़सद

हर इंसान अपनी ज़िंदगी को अपने अंदाज़ में जीता है और उसके अपने तजुर्बे होते हैं उनका सामना करने के। इन्ही तजुर्बों को मद्देनज़र रखते हुए उसका एक नज़रिया बनता है। इस ब्लॉग मे मुमकिन है आपको अपने तजुर्बे दिखाई दें, पर एक अलग नज़रिये के साथ, क्यूंकि यह नज़रिया मेरा है। मेरा मानना है कि ज़िंदगी की दिलचस्प और सबक देने वाली घटनाओं को आपस मे बांटते हुए ही इंसानी ज़िंदगी ने यह तरक्की की है जिसका हम लोग मज़ा ले रहें है। तरक्की के इसी सिलसिले को आगे बढाने के क्रम मे इस ब्लॉग की उत्पति हुई है।