Thursday, June 19, 2008
Wednesday, June 18, 2008
Monday, June 16, 2008
Saturday, June 7, 2008
Thursday, June 5, 2008
हालात
ज़िंदगी के सफर मे कभी बड़े -बड़े सदमे इंसान सह लेता है तो कभी एक छोटी- सी परेशानी बड़ी तकलीफदेह और जान लेवा सी लगने लगती है। ऐसा क्यों होता है ? सोच रहा हूँ। मुझे लगता है शायद तकलीफ के अहसास की शिद्दत हालात पर निर्भर करती है। अगर हालात साज़गार हों तो बड़ी परेशानी का भी सामना आसानी से किया जा सकता है। पर यह हालात को काबू मे कैसे किया जाए ? हालात होते क्या है कमबखत कहीं के। उस दिन और उस समय की आपकी सोचने की धारा , अगर वह सकारात्मक है, तो आपकी दिमागी हालत सकारात्मक होगी और इस सकारात्मक सोच के बल पर आप अपने आस- पास के वातावरण को भी सकारात्मक बना पाएंगे। आपके दिमाग, दिल और आस - पास के वातावरण से ही आपके हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है। तो अपने हालात को काबू मे रखने के लिए सोच से लेकर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष वातावरण को सकारात्मक रखना ज़रूरी है।
Wednesday, June 4, 2008
अब तो सच्ची बात कहने से भी घबराते है लोग
क्या हुई जाती है दुनिया क्या हुए जाते हैं लोग
चलने वाले तो पहुंच जाते है मंजिल पे जकी
सोचने वाले फ़क़त रास्ते मे रह जाते हैं लोग
आशिकी का है कहाँ , अब तो सियासी दौर है
कत्ल करके भी सज़ा से साफ बच जाते हैं लोग
फ़िक्र -ओ - फन, शेर- ओ -अदब है ज़िंदगी के वास्ते
इस हकीक़त को भी लेकिन अब तो झुट्लाते है लोग
ख़ुद बढ़ा देते हैं पहले मुजरिमो के होसले
बोख्लाते हैं बहुत जब मात खाते हैं लोग
अब कहाँ बाक़ी है दुनिया मे चलन ईसार कअ
अपने मतलब के लिए किस्सों को दोहराते हैं लोग
This ghazal is written by my father Mahmood Zaki
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