Wednesday, June 18, 2008

एक शेअर

मैंने आगाज़ में अंजाम की बातें की हैं
गर समझ लो तो बड़े काम की बातें की हैं

Monday, June 16, 2008

आज का शेअर

रुकने न पाएं साथियों ! बढ़ते हुए क़दम

फिर इंकलाब लायेंगे इस ज़िंदगी मैं हम

Saturday, June 7, 2008

एक ग़ज़ल

अब तो सच्ची बात कहने से भी घबराते हैं लोग
क्या हुई जाती है दुनिया क्या हुए जाते हैं लोग

Thursday, June 5, 2008

हालात

ज़िंदगी के सफर मे कभी बड़े -बड़े सदमे इंसान सह लेता है तो कभी एक छोटी- सी परेशानी बड़ी तकलीफदेह और जान लेवा सी लगने लगती है। ऐसा क्यों होता है ? सोच रहा हूँ। मुझे लगता है शायद तकलीफ के अहसास की शिद्दत हालात पर निर्भर करती है। अगर हालात साज़गार हों तो बड़ी परेशानी का भी सामना आसानी से किया जा सकता है। पर यह हालात को काबू मे कैसे किया जाए ? हालात होते क्या है कमबखत कहीं के। उस दिन और उस समय की आपकी सोचने की धारा , अगर वह सकारात्मक है, तो आपकी दिमागी हालत सकारात्मक होगी और इस सकारात्मक सोच के बल पर आप अपने आस- पास के वातावरण को भी सकारात्मक बना पाएंगे। आपके दिमाग, दिल और आस - पास के वातावरण से ही आपके हालात का अंदाजा लगाया जा सकता है। तो अपने हालात को काबू मे रखने के लिए सोच से लेकर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष वातावरण को सकारात्मक रखना ज़रूरी है।

Wednesday, June 4, 2008

अब तो सच्ची बात कहने से भी घबराते है लोग

क्या हुई जाती है दुनिया क्या हुए जाते हैं लोग

चलने वाले तो पहुंच जाते है मंजिल पे जकी

सोचने वाले फ़क़त रास्ते मे रह जाते हैं लोग

आशिकी का है कहाँ , अब तो सियासी दौर है

कत्ल करके भी सज़ा से साफ बच जाते हैं लोग

फ़िक्र -ओ - फन, शेर- ओ -अदब है ज़िंदगी के वास्ते

इस हकीक़त को भी लेकिन अब तो झुट्लाते है लोग

ख़ुद बढ़ा देते हैं पहले मुजरिमो के होसले

बोख्लाते हैं बहुत जब मात खाते हैं लोग

अब कहाँ बाक़ी है दुनिया मे चलन ईसार कअ

अपने मतलब के लिए किस्सों को दोहराते हैं लोग

This ghazal is written by my father Mahmood Zaki