Saturday, September 27, 2008
Saturday, September 20, 2008
Monday, September 15, 2008
मीडिया की ज़िम्मेदारी
मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले की इस बच्ची का कातिल कौन है ? किसने इसके दिल-ओ-दिमाग में इतनी दहशत पैदा कर दी कि उसने अपनी हसीन ज़िन्दगी को दहशत के साए के तले दबा कर खत्म लिया।
एक तो मीडिया के ज़रिये फेलाए जा रही दहशत से अवाम पहले ही खोफज़दा है वहीँ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हमारे मुल्क में अन्धविश्वास को भी बेहद बढावा दे रहा है। आज कल सूरते हाल यह हो गई है कि समाचार चैनल अपने प्राइम टाइम में अन्धविश्वास को बढ़ाने वाली खबरों को जगह दे रहे हैं।
चैनलों कि इस टी आर पी कि दौड़ में सिर्फ़ तीन सी (c) और एक एस (s) ही का जलवा सब तरफ़ दिखाई दे रहा है। पहला सी यानि क्रिकेट, इस सी (c) की हर ख़बर हमारे खबरिया चैनलों के लिए अहम् है। दूसरा सी (c) यानि क्राईम, इस से जुड़ी खबरों को देखने पर लगता है कि मुल्क में कुछ हो ही नही रहा है सिर्फ़ जुर्म और वारदात के। तीसरा सी (c) यानि सिनेमा, ये ऐसी दुनिया है जहाँ बिना चमक-धमक के कुछ नही होता। यहाँ के लोग लड़ते भी हैं तो समाचार कमरों के सामने ताकि ख़बर बन सकें और उसका फायदा उन्हें अपने करियर में मिले। अब बात बचे एक एस (s) यानि सेक्स की , कुछ समाचार चैनल तो आज कल बकायेदा देर रात को केवल इसी विषय पर ख़ास कार्यक्रम चला रहे है और मज़े कि बात यह है कि इन कार्यक्रमों को प्राइम टाइम से भी ज्यादा टी आर पी मिल रही है।
मीडिया के इस गैरजिम्मेदारी भरे रुख को कहीं और किसी तरह से रोकना ही होगा। इस पर लगाम लगाने की बातें काफी समय से की जाती रही हैं। अभी कुछ वक्त पहले ही मीडिया के अपने ही लोगों ने अपनी सीमायें तय करने के उद्देश्य से एक सेल्फ रेगुलातोरी कमेटी बनाई पर उसका भी अब तक तो कोई असर कहीं दिखाई नही दे रहा है।
लेकिन इस सब को कहीं तो रोकना होगा और इसके लिए कोई रास्ता तो ज़रूर तलाशना पड़ेगा। इस सब के लिये अब सोचने से आगे निकलकर कुछ करने का वक्त आ गया है।
Friday, September 12, 2008
Sunday, September 7, 2008
सच
Saturday, September 6, 2008
इंतज़ार
तुम्हे भी इन्तेज़ार है, मुझे भी इंतज़ार है
ऐ सुस्त-सुस्त रहबरों ! तुम्हे यकीन हो न हो
मगर मुझे तो अपने होसलों पे एतेबार है
गमे-जहाँ की वादियों में होसले से काम ले
यहाँ न तेरा दोस्त है न कोई गमगुसार है
वो देखिये दिलों की रौशनी में कांपने लगा
नज़र के सामने जो मुश्किलात का गुबार है
जकी अभी सियासत-ऐ-गमे जहाँ के साये में
वफायें सोगवार हैं खुलूस अश्कबार है
-------महमूद जकी
Thursday, September 4, 2008
बढ़ते हुए क़दम
रुकने न पायें साथियों ! बढ़ते हुए क़दम
फिर इन्कलाब लायेंगे इस ज़िन्दगी में हम
ये क्या घुट रहा हो कहीं ज़िन्दगी का दम
कहने को फिर भी आम है सब पर तेरा करम
आओ कि पहले वक्त के गेसू सवांर ले
फिर उस के बाद देखेंग जुल्फों के पेच ओ ख़म
ये और बात है कि मयस्सर न हो सुकून
हासिल नहीं हयात का ऐ दोस्त ! सिर्फ़ ग़म
अहल ऐ नज़र के सामने तफरीक कुछ नहीं
तेरा ही अक्स पाते हैं देर ओ हरम में हम
छोड़ो के ख़ाक लुत्फ़ मिलेगा शराब में
अब महफिले निशात म साकी न जामे जम
दुनिया को दे रहें हैं नया सोचने का ढंग
और क्या काम लेते जकी शायरी से हम
---------महमूद जकी
Monday, September 1, 2008
मीडिया और बिहार बाढ़
भूल जाते है वातानुकूलित समाचार कमरों में बैठे लोग की मौत का वह खोफनाक मंज़र कितना दिल दहलाने वाला होता होगा जब चारों तरफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ पानी ही नज़र आए। किसी एक व्यक्ति की कामयाबी की ख़बर चलाते वक्त कुछ उन लोगों के बारे में भी सोच ले जो पल पल जल के इस महाप्रलय का सामना करते हुए अपनी जान से हाथ धो रहे हैं और जिनको अपने आस पास सिर्फ़ मौत ही मौत दिखाई दे रही हो। मेहेरबानी करके एक बार उनकी तरफ़ भी देख लें जो अपना सब कुछ कोसी और गंगा की भेंट चढा चुके हैं या जो पिछले कई दिनों से अन का एक दाना भी अपने मुह में नही दाल सके हों। जो अपने सामने ही अपने सपनो की डोर को टूटते हुए देख रहे हों।