Saturday, September 27, 2008

ज़िन्दगी

जीने वालों का अहतराम तो हो

ज़िन्दगी तेरा कुछ निजाम तो हो

कह रहे है जिस ग़म- ऐ- हस्ती

ये फ़साना कहीं तमाम तो हो

ज़िन्दगी की हसीन राहों में

चंद लम्हात का कयाम तो हो

मंजिलें अब भी मुन्तजिर हैं जकी

जज्बा- ऐ- शोक तेज़गाम तो हो

------------महमूद जकी

Saturday, September 20, 2008

उनकी नज़रों


उनकी नज़रों से जाम लेता हूँ

होशमंदी से काम लेता हूँ

जाने क्यों दिल लरज़ने लगता है

जब बहारों का नाम लेता हूँ

मुस्कुराता हूँ जब्र ऐ पैहम पर

वक्त से इन्तेकाम लेता हूँ

उनके लुत्फो करम से हूँ वाकिफ

दूर ही से सलाम लेता हूँ

मेरा गिरना भी मसलेहत है जकी

उनका दामन जो थाम लेता हूं


---------महमूद जकी



Monday, September 15, 2008

मीडिया की ज़िम्मेदारी

जिनेवा में हुए महाप्रयोग की सफलता ने एक बार फिर मीडिया और विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कलाई खोल कर रख दी है। मीडिया अपनी टी आर पी की दौड़ में कितना अँधा हो गया है इसका अंदाज़ लगाया जा सकता है कि इसके द्वारा फेलाए जा रहे भ्रम की वजह से एक मासूम बच्ची ने अपना अनमोल जीवन गवां दिया।
मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले की इस बच्ची का कातिल कौन है ? किसने इसके दिल-ओ-दिमाग में इतनी दहशत पैदा कर दी कि उसने अपनी हसीन ज़िन्दगी को दहशत के साए के तले दबा कर खत्म लिया।
एक तो मीडिया के ज़रिये फेलाए जा रही दहशत से अवाम पहले ही खोफज़दा है वहीँ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हमारे मुल्क में अन्धविश्वास को भी बेहद बढावा दे रहा है। आज कल सूरते हाल यह हो गई है कि समाचार चैनल अपने प्राइम टाइम में अन्धविश्वास को बढ़ाने वाली खबरों को जगह दे रहे हैं।
चैनलों कि इस टी आर पी कि दौड़ में सिर्फ़ तीन सी (c) और एक एस (s) ही का जलवा सब तरफ़ दिखाई दे रहा है। पहला सी यानि क्रिकेट, इस सी (c) की हर ख़बर हमारे खबरिया चैनलों के लिए अहम् है। दूसरा सी (c) यानि क्राईम, इस से जुड़ी खबरों को देखने पर लगता है कि मुल्क में कुछ हो ही नही रहा है सिर्फ़ जुर्म और वारदात के। तीसरा सी (c) यानि सिनेमा, ये ऐसी दुनिया है जहाँ बिना चमक-धमक के कुछ नही होता। यहाँ के लोग लड़ते भी हैं तो समाचार कमरों के सामने ताकि ख़बर बन सकें और उसका फायदा उन्हें अपने करियर में मिले। अब बात बचे एक एस (s) यानि सेक्स की , कुछ समाचार चैनल तो आज कल बकायेदा देर रात को केवल इसी विषय पर ख़ास कार्यक्रम चला रहे है और मज़े कि बात यह है कि इन कार्यक्रमों को प्राइम टाइम से भी ज्यादा टी आर पी मिल रही है।
मीडिया के इस गैरजिम्मेदारी भरे रुख को कहीं और किसी तरह से रोकना ही होगा। इस पर लगाम लगाने की बातें काफी समय से की जाती रही हैं। अभी कुछ वक्त पहले ही मीडिया के अपने ही लोगों ने अपनी सीमायें तय करने के उद्देश्य से एक सेल्फ रेगुलातोरी कमेटी बनाई पर उसका भी अब तक तो कोई असर कहीं दिखाई नही दे रहा है।
लेकिन इस सब को कहीं तो रोकना होगा और इसके लिए कोई रास्ता तो ज़रूर तलाशना पड़ेगा। इस सब के लिये अब सोचने से आगे निकलकर कुछ करने का वक्त आ गया है।

Friday, September 12, 2008

ghazal


आरजुओं को सजाओ, मै ग़ज़ल कहता हूँ !
फूल चुनना है तो आओ, मै ग़ज़ल कहता हूँ!

-------महमूद जकी



Sunday, September 7, 2008

सच



अब तो सच्ची बात कहने से भी घबराते हैं लोग

क्या हुई जाती है दुनिया क्या हुए जाते है लोंग

-----------महमूद जकी


Saturday, September 6, 2008

इंतज़ार

उस इन्कलाब का जो इक करीब की पुकार है

तुम्हे भी इन्तेज़ार है, मुझे भी इंतज़ार है

ऐ सुस्त-सुस्त रहबरों ! तुम्हे यकीन हो न हो

मगर मुझे तो अपने होसलों पे एतेबार है

गमे-जहाँ की वादियों में होसले से काम ले

यहाँ न तेरा दोस्त है न कोई गमगुसार है

वो देखिये दिलों की रौशनी में कांपने लगा

नज़र के सामने जो मुश्किलात का गुबार है

जकी अभी सियासत-ऐ-गमे जहाँ के साये में

वफायें सोगवार हैं खुलूस अश्कबार है


-------महमूद जकी




Thursday, September 4, 2008

बढ़ते हुए क़दम




रुकने न पायें साथियों ! बढ़ते हुए क़दम

फिर इन्कलाब लायेंगे इस ज़िन्दगी में हम

ये क्या घुट रहा हो कहीं ज़िन्दगी का दम

कहने को फिर भी आम है सब पर तेरा करम

आओ कि पहले वक्त के गेसू सवांर ले

फिर उस के बाद देखेंग जुल्फों के पेच ओ ख़म

ये और बात है कि मयस्सर न हो सुकून

हासिल नहीं हयात का ऐ दोस्त ! सिर्फ़ ग़म

अहल ऐ नज़र के सामने तफरीक कुछ नहीं

तेरा ही अक्स पाते हैं देर ओ हरम में हम

छोड़ो के ख़ाक लुत्फ़ मिलेगा शराब में

अब महफिले निशात म साकी न जामे जम

दुनिया को दे रहें हैं नया सोचने का ढंग

और क्या काम लेते जकी शायरी से हम

---------महमूद जकी

Monday, September 1, 2008

मीडिया और बिहार बाढ़


ख़बरों की अहमियत को समझना भी अब ख़बर वाले भूल गए है । बात है २८ अगस्त २००८ की जब एक और देश के प्रधानमंत्री बिहार में आई बाढ़ और उससे हो रहे विनाश को राष्ट्रीय आपदा मान रहे थे। तो दूसरी तरफ़ लगभग सभी समाचार चैनल चला रहे थे ख़बर उस एक व्यक्ति की जो खेल से जुडा है। माना कि समाचार चैनलों को बाजारवाद के इस दौर में उद्योगजगत के साथ हाथ मिलकर चलना होता है लेकिन इतनी भी क्या बेहिसी कि राष्ट्रीय आपदा के वक्त में भी केवल उस ख़बर को विशेष रूप से चलाया जा रहा है जिससे जुडा है कई कंपनियों का ब्रांड अम्बस्डोर।

भूल जाते है वातानुकूलित समाचार कमरों में बैठे लोग की मौत का वह खोफनाक मंज़र कितना दिल दहलाने वाला होता होगा जब चारों तरफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ पानी ही नज़र आए। किसी एक व्यक्ति की कामयाबी की ख़बर चलाते वक्त कुछ उन लोगों के बारे में भी सोच ले जो पल पल जल के इस महाप्रलय का सामना करते हुए अपनी जान से हाथ धो रहे हैं और जिनको अपने आस पास सिर्फ़ मौत ही मौत दिखाई दे रही हो। मेहेरबानी करके एक बार उनकी तरफ़ भी देख लें जो अपना सब कुछ कोसी और गंगा की भेंट चढा चुके हैं या जो पिछले कई दिनों से अन का एक दाना भी अपने मुह में नही दाल सके हों। जो अपने सामने ही अपने सपनो की डोर को टूटते हुए देख रहे हों।

अपना फायदा हर कोई चाहता है। इसमे किसी को कोई आपत्ति भी नही होनी चाहिए, यह बिल्कुल स्वाभाविक है लेकिन अपने फायदे में दूसरो के दर्द को भूल जन इंसानियत के ख़िलाफ़ किया गया अपराध हे जिसे माफ़ किया जन इंसानियत पैर किए गए ज़ुल्म के बराबर है।

हेरानी की बात है कि १८ अगस्त को कोसी के बाँध में दरार पड़ने से बिहार में बाढ़ की स्तिथि भयानक रूप ले ली। हम सब ही जानते है कि हमारे देश और विशेष रूप से बिहार कि सरकार को अपनी ज़िम्मेदारी निभाना कितना आता है। बाढ़ ने महाप्रलय का रूप धारण कर लिया उसके बाद भी राज के मुखिया को केन्द्र से मदद मांगने में दस दिन लग गए। उससे पहले तक सिर्फ़ खोखली बयानबाजी से ही काम चलाते रहे। इस बार केन्द्र के रुख की सरहाना करनी होगी, क्यूंकि केंद्रीय मंत्री ने चाहे वह बिहार के ही क्यूँ न हों हवाई सर्वेक्षण करके स्तिथि कि गंभीरता को समझते हुए प्रधानमन्त्री के पास पहुँच कर दौरा करने और मदद का आग्रह करने पहल की और फिर प्रधानमन्त्री ने भी स्तिथि की नजाकत को समझते हुए मांग से ज़्यादा उदारता दिखाई।

इस सब घटना क्रममें देश का ससे तेज़ चलने वाला मीडिया क्यों पीछे रहा और खामोशी बनाये रखा समझ से परे है। बिहार और बिहार के सभी मंत्रियों और सरकारोंकि हर समय ख़बर रखने वाला मीडिया विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस बार किस तरह चूंक गया और इतनी भयानक हो चुकी स्तिथि को नज़रान्दाज़ कर गया हेरानी की बात है।