ज़िन्दगी में हादसे बड़ी तबदीली का सबब बन जाते हैं। मै छोटा सही लेकिन तजुर्बों और बड़ों के ऐतिमाद ने मुझे कभी छोटा रहने नही दिया। इस बार भी एक हादसा हुआ। सबको सामना करना था। किया एक बार फिर सब ने ऐतिमाद और चला मैं एक नए तजुर्बे के लिए। लगा कामयाबी मिल रही है। मिली भी देख कर विश्वास उनका जो हादसे का शिकार हैं। बहुत अपने। करीबी। मनो तो मेरा ही हिस्सा हैं । करी हिम्मत। लेकिन हर बार की तरह इस बार भी सोच लिया के तजुर्बों मेंकामायाबी और नाकामयाबी दोनों का सामना करना पड़ सकता है। ज़िम्मेदारी जहाँ अच्छाई देती है वहीँ बुराई भी। खेर मुझे इस काम में अच्छाई और बुराई की परवाह भी नही है। मकसद एक बहन की खुशी और उसकी ज़िन्दगी। इस बार भी दिमागी तोर पर तो कामयाबी और नाकामयाबी दोनों के लिए तैयार हो कर शुरू किया पर इस बार नाकामयाबी के मानी बहुत ही खतरनाक दिख रहे थे। देखें इस बार क्या मिलता है। इंसान हूँ फ़रिश्ता नही। लेकिन दुआएं मेरे और मुझसे जुड़े लोगों के साथ। शुक्रिया उन सबका जो इस जदोजहद में साथ हैं। शुक्रिया उनका भी जो दुआ के ज़रिये इस मकसद से जुड़े। खुदा जल्द हिरासत को रिहाई में बदले। आमीन।
Wednesday, August 20, 2008
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