Friday, August 22, 2008

खेल




क्या हमारे खिलाड़ियों के ओलंम्पिक में हुए प्रदर्शन से हमें वाकई खुश होना चाहिए ? कभी लगता है क्या इतने विशाल और महान मुल्क के नागरिकों को इतनी सी कामयाबी पर इतना खुश होना चाहिए जितना हम लोग हुए हैं? मुझे लगता है हमे होना चाहिए क्यों कि खुशी तो सिर्फ़ खुशी होती है छोटी और बड़ी कर के उसकी अहमियत को कम करना उस खुशी देने वाले के साथ जियादती है।

अजीब नही लगता है हम अपनी कमजोरियों को किस तरह से शब्दों के जाल में घुमा कर छुपा लेने कि कोशिश करते हैं। अरे ज़रा सोचो तो इतना बड़ा देश, इतनी बड़ी आबादी और हम इतिहास रचने की बात कर रहे हैं कि हमने पहला व्यक्तिगत सुवर्ण पदक जीता या इस बार तो हम कुल मिलाकर तीन पदक जीत लिए हैं।

हम से कई मामलों में पीछे रहने वाले मुल्क हम से आगे हैं खेल कि दुनिया में। ज़्यादा परेशां करने वाली बात यह है कि हम अपने राष्ट्रीय खेल हॉकी में क्वालीफाई तक नही कर सके। कहाँ है हमारे देश कि संस्कृति को बचाने का दावा करने और स्वादशवाद का नारा देने वाली पार्टियाँ ? यहाँ खामोश क्यूँ हैं देश के इस और उसकी धरोहर के इस हाल पर ? मेरा मानना है के जिस तरह से हमे हमारे राष्ट्र का सम्मान प्यारा है वैसे ही हमे हमारी सभी राष्ट्रीय पहचानो से भी प्यार होना चाहिए। सम्मान जिस तरह राष्ट्रीय प्रतिक राष्ट्र ध्वज का है वैसा ही सम्मान राष्ट्रीय गीत, भाषा,खेल और पक्षी का होना चाहिए।

जहाँ एक और हम राष्ट्र गीत और राष्ट्र ध्वज के लिए लड़ मर रहे हैं वहीँ दूसरी और राष्तिर्ये खेल कि इतनी उपेक्षा क्यूँ?

सोचना चाहिए........... सोचना होगा ............... सोचिये


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