सभी बहार-ऐ-इश्क लाज़वाल कहते आए हैं
बगैर इश्क ज़िन्दगी वबाल कहते आए हैं
मुझे गुरुर-ऐ-ज़ब्त-ऐ-ग़म नही मगर ये अहले दिल
इन आँसूओं का रोकना कमाल कहते आए हैं
बकैद-ऐ-रस्म-ऐ-आशिकी ब-पास-ऐ-अजमत-ऐ-वफ़ा
नज़र-नज़र से अपने ग़म का हाल कहते आए हैं
जुनू जिसे समझ गया , मगर न अक्ल पा सकी
वह इस तरह भी किस्सा-ऐ-जमाल कहते आए हैं
कशाकश-ऐ-हयात ही तो लज्ज़त-ऐ-फिराक है
इसी लिए तो मौत को विसाल कहते आए हैं
मुझे नही है आरजू विसाल-ऐ-यार की जकी
विसाल को तो इश्क का ज़वाल कहते आए हैं
-------महमूद जकी
14 comments:
आपका ग़ज़ल बहुत ही अच्छा है ...आपका ये ग़ज़ल युवाओ को आकर्षित करेगी....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है...
बहुत सुंदर कहा आपने
कशाकश-ऐ-हयात ही तो लज्ज़त-ऐ-फिराक है
इसी लिए तो मौत को विसाल कहते आए हैं
bahot khub, aapka mizaz bahot pasand aaya sundar rachana ke liye dhero badhai main ummid karunga aapke aagaman ka mere blog pe ...
मुझे गुरुर ऐ गम नही मगर मैं अहले दिल.....पंक्तियाँ पसंद आई....बधाई
सुंदर रचना के लिये आपको बधाई
Bahut achcha likha hai aapne. Badhai.
बहुत अच्छी ग़ज़ल!आपको बहुत-बहुत बधाई/
Alagse kya comment karun??Sabheese sehmat hun...han, alfaaz thode kathin lage par dobara padhke mayne achhee tarah samajhme aa gayee...nazakatse bharee rachna, ek dard chhupaye hue...
बहुत खूब गजल कही है आपने। मुबारकबाद कुबूल फरमाएं।
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है।
जुनू जिसे समझ गया , मगर न अक्ल पा सकी
वह इस तरह भी किस्सा-ऐ-जमाल कहते आए हैं
वाह!
In aasuon ko rokna kamaal kehte aaye hai......behad khoobsoorat..badhai...
नज़र नज़र बकैद-ऐ-रस्म-ऐ-आशिकी,जुनू समझ,
बिना लफ्जों के हर्फों के ज़िंदगी का हाल कहते आए
ziyada to urdu samajh nahi paati mai abhi par jitta samajh saki unmein yeh bahut khoobsoorat hain..
जुनू जिसे समझ गया , मगर न अक्ल पा सकी
वह इस तरह भी किस्सा-ऐ-जमाल कहते आए हैं
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