Saturday, September 27, 2008

ज़िन्दगी

जीने वालों का अहतराम तो हो

ज़िन्दगी तेरा कुछ निजाम तो हो

कह रहे है जिस ग़म- ऐ- हस्ती

ये फ़साना कहीं तमाम तो हो

ज़िन्दगी की हसीन राहों में

चंद लम्हात का कयाम तो हो

मंजिलें अब भी मुन्तजिर हैं जकी

जज्बा- ऐ- शोक तेज़गाम तो हो

------------महमूद जकी

9 comments:

seema gupta said...

मंजिलें अब भी मुन्तजिर हैं जकी
जज्बा- ऐ- शोक तेज़गाम तो हो
" beautiful thought and creation, liked it"

जिन्दगी की धुप ने झुलसा दिया,
एक शीतल छावं की तलाश है...
रास्तों मे मंजिलें भटक गईं ,
एक ठहरे गावं की तलाश है .........

Regards

रंजना said...

बेहतरीन,बहुत उम्दा.

नीरज गोस्वामी said...

कह रहे है जिस ग़म- ऐ- हस्ती
ये फ़साना कहीं तमाम तो हो
भाई वाह...वा...बहुत खूब...बेहतरीन ग़ज़ल.
नीरज

डॉ .अनुराग said...

कह रहे है जिस ग़म- ऐ- हस्ती
ये फ़साना कहीं तमाम तो हो

bahut khoob....subhanaalh....

फ़िरदौस ख़ान said...

ज़िन्दगी की हसीन राहों में

चंद लम्हात का कयाम तो हो

मंजिलें अब भी मुन्तजिर हैं जकी

जज्बा- ऐ- शोक तेज़गाम तो हो


बेहतरीन रचना...

योगेन्द्र मौदगिल said...

Bhai Wah..
Behtreen prastuti.......

Vinay said...

हम तो आपको पढ़ने के बाद आपके कायल हो गये! अब तो रोज़ यूँ ही मुलाक़ात होगी!

प्रदीप मानोरिया said...

श्री नज़र साहेब बेहतरीन ग़ज़ल पढ़वाने के लिए शुक्रिया ज़िंदगी खूबसूरत रहे मोड़ हर हसीं रहे
अपने जीने के साथ सूस्रों के लिए कुछ पैगाम तो हो . आपके मेरे ब्लॉग पर आगमन के लिए धन्यबाद कृपया चुनावी दंगल पढने पुन: पधारे
प्रदीप मनोरिया

Gyan Darpan said...

बेहतरीन रचना