Saturday, September 6, 2008

इंतज़ार

उस इन्कलाब का जो इक करीब की पुकार है

तुम्हे भी इन्तेज़ार है, मुझे भी इंतज़ार है

ऐ सुस्त-सुस्त रहबरों ! तुम्हे यकीन हो न हो

मगर मुझे तो अपने होसलों पे एतेबार है

गमे-जहाँ की वादियों में होसले से काम ले

यहाँ न तेरा दोस्त है न कोई गमगुसार है

वो देखिये दिलों की रौशनी में कांपने लगा

नज़र के सामने जो मुश्किलात का गुबार है

जकी अभी सियासत-ऐ-गमे जहाँ के साये में

वफायें सोगवार हैं खुलूस अश्कबार है


-------महमूद जकी




4 comments:

manvinder bhimber said...

mahmood ji...
achchi najam ke liye badhae

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन रहा महमूद जकी जी को पढ़ना. आभार.

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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी

parul said...

apki vichar bhaut ache hai. meri kavita apne padhi apna kimti samay muje diya iske shukriya

art said...

बहुत सुंदर लिखा है ..