
तुम्हे भी इन्तेज़ार है, मुझे भी इंतज़ार है
ऐ सुस्त-सुस्त रहबरों ! तुम्हे यकीन हो न हो
मगर मुझे तो अपने होसलों पे एतेबार है
गमे-जहाँ की वादियों में होसले से काम ले
यहाँ न तेरा दोस्त है न कोई गमगुसार है
वो देखिये दिलों की रौशनी में कांपने लगा
नज़र के सामने जो मुश्किलात का गुबार है
जकी अभी सियासत-ऐ-गमे जहाँ के साये में
वफायें सोगवार हैं खुलूस अश्कबार है
-------महमूद जकी
4 comments:
mahmood ji...
achchi najam ke liye badhae
बहुत बेहतरीन रहा महमूद जकी जी को पढ़ना. आभार.
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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी
apki vichar bhaut ache hai. meri kavita apne padhi apna kimti samay muje diya iske shukriya
बहुत सुंदर लिखा है ..
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