Thursday, September 4, 2008

बढ़ते हुए क़दम




रुकने न पायें साथियों ! बढ़ते हुए क़दम

फिर इन्कलाब लायेंगे इस ज़िन्दगी में हम

ये क्या घुट रहा हो कहीं ज़िन्दगी का दम

कहने को फिर भी आम है सब पर तेरा करम

आओ कि पहले वक्त के गेसू सवांर ले

फिर उस के बाद देखेंग जुल्फों के पेच ओ ख़म

ये और बात है कि मयस्सर न हो सुकून

हासिल नहीं हयात का ऐ दोस्त ! सिर्फ़ ग़म

अहल ऐ नज़र के सामने तफरीक कुछ नहीं

तेरा ही अक्स पाते हैं देर ओ हरम में हम

छोड़ो के ख़ाक लुत्फ़ मिलेगा शराब में

अब महफिले निशात म साकी न जामे जम

दुनिया को दे रहें हैं नया सोचने का ढंग

और क्या काम लेते जकी शायरी से हम

---------महमूद जकी

3 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा चीज पढ़वाई, बहुत आभार.

Dr. Nazar Mahmood said...

UDAY JI SHAYARI PASAND KARNE KE LIYE SHUKRIYA,
UMEED HAI AB TOH MULAQAAT HOTI HI RAHEGI,
WAISE YEH PANKTIYAN MERE PITA JI KI HAIN

parul said...

apki kavita ko padhkar kafi prena mili h. apko ache lekhan ke liye bdhai ho