
उनकी नज़रों से जाम लेता हूँ
होशमंदी से काम लेता हूँ
जाने क्यों दिल लरज़ने लगता है
जब बहारों का नाम लेता हूँ
मुस्कुराता हूँ जब्र ऐ पैहम पर
वक्त से इन्तेकाम लेता हूँ
उनके लुत्फो करम से हूँ वाकिफ
दूर ही से सलाम लेता हूँ
मेरा गिरना भी मसलेहत है जकी
उनका दामन जो थाम लेता हूं
---------महमूद जकी
13 comments:
जाने क्यों दिल लरज़ने लगता है
जब बहारों का नाम लेता हूँ
मुस्कुराता हूँ जब्र ऐ पैहम पर
वक्त से इन्तेकाम लेता हूँ
शानदार ग़ज़ल है... यहां आकर अच्छा लगा...जिंदगी बख़ैर रही तो फिर आना होगा...
आपका ब्लॉग अपने ब्लॉग 'दोस्तों की महफ़िल' में शामिल किया है...
जकी साहब का संक्षिप्त परिचय भी दे दीजिए ।
उनकी नज़रों से जाम लेता हूँ
होशमंदी से काम लेता हूँ
"very beautiful and soft kind of poetry, enjoyed reading it"
Regards
बहुत उम्दा गजल!!
सादगी भरी एक खूबसूरत ग़ज़ल
बहुत ही उम्दा ब्लाग बनाया है महमूद साहब आपने। आपका पूरा प्रोफाइल लगाते तो अच्छा लगता।
मेरा गिरना भी मसलेहत है जकी
उनका दामन जो थाम लेता हूं
bahut khoob.....
मुस्कुराता हूँ जब्र ऐ पैहम पर
वक्त से इन्तेकाम लेता हूँ
उनके लुत्फो करम से हूँ वाकिफ
दूर ही से सलाम लेता हूँ
Wah
Mazaa aa gaya saheb
ये ज़की साहब आप ही हैं या कोई और, जरा इनका भी परिचय करवाएं.
काफ़ी असरदार लाइनें हैं.
उनके लुत्फो करम से हूँ वाकिफ
दूर ही से सलाम लेता हूँ
मेरा गिरना भी मसलेहत है जकी
उनका दामन जो थाम लेता हूं...
unka daman tham teta hoon...
Achchhi lagi gajal....
Badhai..
http://dev-poetry.blogspot.com
'..muskrata hu jabr.e.paiham pr, wqt se intqaam leta hu.." bahot khoob !! bhai achha izhaar hai.. aap ke hausle ki daad deta hu. nazariyah vaaq`aee qaabil.e.zikr hai. badhaaee. ---MUFLIS---
aap kitna acha likhte hain!!
मेरा गिरना भी मसलेहत है जकी
उनका दामन जो थाम लेता हूं
likhe hue andaaz se zada aapke khayalon ki daad hain..very beautiful lines..
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