Saturday, September 20, 2008

उनकी नज़रों


उनकी नज़रों से जाम लेता हूँ

होशमंदी से काम लेता हूँ

जाने क्यों दिल लरज़ने लगता है

जब बहारों का नाम लेता हूँ

मुस्कुराता हूँ जब्र ऐ पैहम पर

वक्त से इन्तेकाम लेता हूँ

उनके लुत्फो करम से हूँ वाकिफ

दूर ही से सलाम लेता हूँ

मेरा गिरना भी मसलेहत है जकी

उनका दामन जो थाम लेता हूं


---------महमूद जकी



13 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

जाने क्यों दिल लरज़ने लगता है

जब बहारों का नाम लेता हूँ

मुस्कुराता हूँ जब्र ऐ पैहम पर

वक्त से इन्तेकाम लेता हूँ


शानदार ग़ज़ल है... यहां आकर अच्छा लगा...जिंदगी बख़ैर रही तो फिर आना होगा...

फ़िरदौस ख़ान said...

आपका ब्लॉग अपने ब्लॉग 'दोस्तों की महफ़िल' में शामिल किया है...

अफ़लातून said...

जकी साहब का संक्षिप्त परिचय भी दे दीजिए ।

seema gupta said...

उनकी नज़रों से जाम लेता हूँ
होशमंदी से काम लेता हूँ
"very beautiful and soft kind of poetry, enjoyed reading it"

Regards

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा गजल!!

rakhshanda said...

सादगी भरी एक खूबसूरत ग़ज़ल

Anonymous said...

बहुत ही उम्दा ब्लाग बनाया है महमूद साहब आपने। आपका पूरा प्रोफाइल लगाते तो अच्छा लगता।

डॉ .अनुराग said...

मेरा गिरना भी मसलेहत है जकी

उनका दामन जो थाम लेता हूं

bahut khoob.....

योगेन्द्र मौदगिल said...

मुस्कुराता हूँ जब्र ऐ पैहम पर

वक्त से इन्तेकाम लेता हूँ

उनके लुत्फो करम से हूँ वाकिफ

दूर ही से सलाम लेता हूँ

Wah
Mazaa aa gaya saheb

roushan said...

ये ज़की साहब आप ही हैं या कोई और, जरा इनका भी परिचय करवाएं.
काफ़ी असरदार लाइनें हैं.

Dev said...

उनके लुत्फो करम से हूँ वाकिफ

दूर ही से सलाम लेता हूँ

मेरा गिरना भी मसलेहत है जकी

उनका दामन जो थाम लेता हूं...

unka daman tham teta hoon...
Achchhi lagi gajal....
Badhai..


http://dev-poetry.blogspot.com

daanish said...

'..muskrata hu jabr.e.paiham pr, wqt se intqaam leta hu.." bahot khoob !! bhai achha izhaar hai.. aap ke hausle ki daad deta hu. nazariyah vaaq`aee qaabil.e.zikr hai. badhaaee. ---MUFLIS---

Chhiyaishi said...

aap kitna acha likhte hain!!

मेरा गिरना भी मसलेहत है जकी
उनका दामन जो थाम लेता हूं
likhe hue andaaz se zada aapke khayalon ki daad hain..very beautiful lines..