Monday, September 15, 2008

मीडिया की ज़िम्मेदारी

जिनेवा में हुए महाप्रयोग की सफलता ने एक बार फिर मीडिया और विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कलाई खोल कर रख दी है। मीडिया अपनी टी आर पी की दौड़ में कितना अँधा हो गया है इसका अंदाज़ लगाया जा सकता है कि इसके द्वारा फेलाए जा रहे भ्रम की वजह से एक मासूम बच्ची ने अपना अनमोल जीवन गवां दिया।
मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले की इस बच्ची का कातिल कौन है ? किसने इसके दिल-ओ-दिमाग में इतनी दहशत पैदा कर दी कि उसने अपनी हसीन ज़िन्दगी को दहशत के साए के तले दबा कर खत्म लिया।
एक तो मीडिया के ज़रिये फेलाए जा रही दहशत से अवाम पहले ही खोफज़दा है वहीँ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हमारे मुल्क में अन्धविश्वास को भी बेहद बढावा दे रहा है। आज कल सूरते हाल यह हो गई है कि समाचार चैनल अपने प्राइम टाइम में अन्धविश्वास को बढ़ाने वाली खबरों को जगह दे रहे हैं।
चैनलों कि इस टी आर पी कि दौड़ में सिर्फ़ तीन सी (c) और एक एस (s) ही का जलवा सब तरफ़ दिखाई दे रहा है। पहला सी यानि क्रिकेट, इस सी (c) की हर ख़बर हमारे खबरिया चैनलों के लिए अहम् है। दूसरा सी (c) यानि क्राईम, इस से जुड़ी खबरों को देखने पर लगता है कि मुल्क में कुछ हो ही नही रहा है सिर्फ़ जुर्म और वारदात के। तीसरा सी (c) यानि सिनेमा, ये ऐसी दुनिया है जहाँ बिना चमक-धमक के कुछ नही होता। यहाँ के लोग लड़ते भी हैं तो समाचार कमरों के सामने ताकि ख़बर बन सकें और उसका फायदा उन्हें अपने करियर में मिले। अब बात बचे एक एस (s) यानि सेक्स की , कुछ समाचार चैनल तो आज कल बकायेदा देर रात को केवल इसी विषय पर ख़ास कार्यक्रम चला रहे है और मज़े कि बात यह है कि इन कार्यक्रमों को प्राइम टाइम से भी ज्यादा टी आर पी मिल रही है।
मीडिया के इस गैरजिम्मेदारी भरे रुख को कहीं और किसी तरह से रोकना ही होगा। इस पर लगाम लगाने की बातें काफी समय से की जाती रही हैं। अभी कुछ वक्त पहले ही मीडिया के अपने ही लोगों ने अपनी सीमायें तय करने के उद्देश्य से एक सेल्फ रेगुलातोरी कमेटी बनाई पर उसका भी अब तक तो कोई असर कहीं दिखाई नही दे रहा है।
लेकिन इस सब को कहीं तो रोकना होगा और इसके लिए कोई रास्ता तो ज़रूर तलाशना पड़ेगा। इस सब के लिये अब सोचने से आगे निकलकर कुछ करने का वक्त आ गया है।

3 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

सही कहा है आपने...

मीडिया के इस गैरजिम्मेदारी भरे रुख को कहीं और किसी तरह से रोकना ही होगा। इस पर लगाम लगाने की बातें काफी समय से की जाती रही हैं। अभी कुछ वक्त पहले ही मीडिया के अपने ही लोगों ने अपनी सीमायें तय करने के उद्देश्य से एक सेल्फ रेगुलातोरी कमेटी बनाई पर उसका भी अब तक तो कोई असर कहीं दिखाई नही दे रहा है।
लेकिन इस सब को कहीं तो रोकना होगा और इसके लिए कोई रास्ता तो ज़रूर तलाशना पड़ेगा। इस सब के लिये अब सोचने से आगे निकलकर कुछ करने का वक्त आ गया है।

Anonymous said...

ye apka Nazariyah hai, kuchh had tak sach bhi hai par sayad sab esase etefak naa rakhe, fir bhi bahot badhiya, dhnyabad

Dev said...

Bahut badhiya likha hai...
Badhai..
http://dev-poetry.blogspot.com/