
ख़बरों की अहमियत को समझना भी अब ख़बर वाले भूल गए है । बात है २८ अगस्त २००८ की जब एक और देश के प्रधानमंत्री बिहार में आई बाढ़ और उससे हो रहे विनाश को राष्ट्रीय आपदा मान रहे थे। तो दूसरी तरफ़ लगभग सभी समाचार चैनल चला रहे थे ख़बर उस एक व्यक्ति की जो खेल से जुडा है। माना कि समाचार चैनलों को बाजारवाद के इस दौर में उद्योगजगत के साथ हाथ मिलकर चलना होता है लेकिन इतनी भी क्या बेहिसी कि राष्ट्रीय आपदा के वक्त में भी केवल उस ख़बर को विशेष रूप से चलाया जा रहा है जिससे जुडा है कई कंपनियों का ब्रांड अम्बस्डोर।
भूल जाते है वातानुकूलित समाचार कमरों में बैठे लोग की मौत का वह खोफनाक मंज़र कितना दिल दहलाने वाला होता होगा जब चारों तरफ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ पानी ही नज़र आए। किसी एक व्यक्ति की कामयाबी की ख़बर चलाते वक्त कुछ उन लोगों के बारे में भी सोच ले जो पल पल जल के इस महाप्रलय का सामना करते हुए अपनी जान से हाथ धो रहे हैं और जिनको अपने आस पास सिर्फ़ मौत ही मौत दिखाई दे रही हो। मेहेरबानी करके एक बार उनकी तरफ़ भी देख लें जो अपना सब कुछ कोसी और गंगा की भेंट चढा चुके हैं या जो पिछले कई दिनों से अन का एक दाना भी अपने मुह में नही दाल सके हों। जो अपने सामने ही अपने सपनो की डोर को टूटते हुए देख रहे हों।
अपना फायदा हर कोई चाहता है। इसमे किसी को कोई आपत्ति भी नही होनी चाहिए, यह बिल्कुल स्वाभाविक है लेकिन अपने फायदे में दूसरो के दर्द को भूल जन इंसानियत के ख़िलाफ़ किया गया अपराध हे जिसे माफ़ किया जन इंसानियत पैर किए गए ज़ुल्म के बराबर है।
हेरानी की बात है कि १८ अगस्त को कोसी के बाँध में दरार पड़ने से बिहार में बाढ़ की स्तिथि भयानक रूप ले ली। हम सब ही जानते है कि हमारे देश और विशेष रूप से बिहार कि सरकार को अपनी ज़िम्मेदारी निभाना कितना आता है। बाढ़ ने महाप्रलय का रूप धारण कर लिया उसके बाद भी राज के मुखिया को केन्द्र से मदद मांगने में दस दिन लग गए। उससे पहले तक सिर्फ़ खोखली बयानबाजी से ही काम चलाते रहे। इस बार केन्द्र के रुख की सरहाना करनी होगी, क्यूंकि केंद्रीय मंत्री ने चाहे वह बिहार के ही क्यूँ न हों हवाई सर्वेक्षण करके स्तिथि कि गंभीरता को समझते हुए प्रधानमन्त्री के पास पहुँच कर दौरा करने और मदद का आग्रह करने पहल की और फिर प्रधानमन्त्री ने भी स्तिथि की नजाकत को समझते हुए मांग से ज़्यादा उदारता दिखाई।
इस सब घटना क्रममें देश का ससे तेज़ चलने वाला मीडिया क्यों पीछे रहा और खामोशी बनाये रखा समझ से परे है। बिहार और बिहार के सभी मंत्रियों और सरकारोंकि हर समय ख़बर रखने वाला मीडिया विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस बार किस तरह चूंक गया और इतनी भयानक हो चुकी स्तिथि को नज़रान्दाज़ कर गया हेरानी की बात है।
3 comments:
apka kahana shai hai....jahi hi raha hai
दुखद एंव शोचनीय हालत है, कम्बख्त नेता न हुए यमदूत हो गये हैं।
Word verification को हटा दें तो टिप्पणी देने में सुविधा हो।
नेता है सिर्फ भाषण देते है ।
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